Sunday, October 7, 2012


आइए कुछ गुफ्तगू अब मुल्क पर करते चले
अपनी ताकत साथ लेकर दिल्ली को बढ़ते चलें

रहनुमाओं से नहीं उम्मीद कोई अब बची
खुद लड़ेंगे जंग अपनी, आइए कहते चलें

साठ-पैंसठ साल से सहते रहे, कितना सहें
जोर धक्का सल्तनत को आइए देते चलें

जख्म छोटा था, मगर नासूर सा अब बन गया
मरहम-पट्टी छोड़िए, इंजेक्शन लेते चलें

टूजी, थ्रीजी और जीजा जी के करतब वाह-वाह
धतकरम वालों का किस्सा खत्म अब करते चलें

-कुंवर प्रीतम
8-10-2012



Saturday, October 6, 2012


कितनी आसानी से सबको टोपी पहना देता है
जालिम दिल्ली वाला दिल सबको बहला देता है

जेब से लेकर चूल्हे तक सब पर पहरेदारी है
जली रोटियां खाने बैठो, वह भी मंगवा लेता है

एक पहेली आज तलक समझ न पाया हिन्दोस्तां
सत्ता में आते ही नेता झोली भरवा लेता है

चिकना चाबुक पीठ के पीछे, और लबों पर मीठे बोल
भारत मां को गैर की खातिर गिरवी रखवा देता है

-कुंवर प्रीतम
7-10-2012



Friday, October 5, 2012


प्यार-मोहब्बत दुनिया वालो, बेमतलब बेमानी है
तू दीवाना जिसका है वो और किसी की दीवानी है
मीरा भी तो दीवानी थी, पागल थी कान्हा के पीछे
लेकिन कान्हा ने मीरा की व्यथा कहां पहचानी है
-कुंवर प्रीतम
6-10-2012


हर दस्तक पर कान टिकाए आखिर कब तक रहते हम
पूछ रहे थे लोग व्यथा, पर आखिर किससे कहते हम
इन्तजार की हदें तोड़कर जख्मी, पागल तक कहलाए
दुनिया भर के ताने-वाने आखिर कब तक सहते हम
-कुंवर प्रीतम
6-10-2012

Sunday, September 2, 2012


लो आ गयी है फिर से रूत प्रेम की सुहानी
इस रूत में तुम मिलो तो बने इक नयी कहानी
बादल बरस रहे और मौसम है महका-महका
शायद ये मांगता है कोई प्रेम की निशानी

-कुंवर प्रीतम
2-9-12

Saturday, September 1, 2012


ये जिन्दगी के मेले, कितने यहां झमेले
वो भाग्यवान है जो इसका मजा सके ले
प्रेम-पथ पे अक्सर चोटें मिली सभी को
कभी वो रहे अकेले, कभी ये रहे अकेले
-कुंवर प्रीतम
1-9-12

Friday, August 31, 2012

कभी बांसुरी बजाकर, कभी गीत गुनगुनाकर
पुष्कर हो जैसे प्यारा, जिसमें कभी नहाकर
जादू सा कर रहे तुम, मेरे प्रेम के दिवाकर
कहां जाके छुप गए हो, मझधार में डूबा कर

-कुंवर प्रीतम
31-8-2012