Friday, April 15, 2011

कुंवर प्रीतम के मुक्तक


कुंवर प्रीतम के मुक्तक 

मेरा दिल क्यूँ धड़क बैठा, ये साँसें कंपकंपाई क्यूँ
तुम्ही ने कुछ किया होगा, हवाएं तेज आई क्यूँ 
अचानक क्यूँ महक आई, आकर छू गयी तन-मन
सिहर उट्ठा बदन मेरा, ये आँखें डबडबाई क्यूँ.

परिंदे रात में, ख्वाबों में आकर गुनगुनाते  हैं
नहीं मालूम मेरा गम या अपना गीत गाते हैं
गुटरगूं उनकी सुनने को मैं जब भी कान देता हूँ
झुका कर शर्म से पलकें, परिंदे भाग जाते हैं

लगाना, तोड़ देना दिल, कहो कैसी इनायत है
कभी मुझसे कहा क्यूँ था, मोहब्बत ही इबादत है
जो चाहो फैसला कर लो, मगर सुन लो हमारी भी 
है मुजरिम भी तुम्हारा औ तुम्हारी ही अदालत है 

कुंवर प्रीतम
कोलकाता 
पहला बैशाख, १५ अप्रैल २०११  

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