Wednesday, April 20, 2011

नमन करते हैं हम गुरुवर


नमन करते हैं हम गुरुवर, पधारे आज इस आँगन
खिल उट्ठा ह्रदय सबका, खुशियों का झरे सावन
भक्तों के हो रखवाले, गरीबों के मसीहा तुम 
मेरे मालिक रहे आबाद, तुम्हारे दो चरण पावन

कुंवर प्रीतम 
२०.४.२०११

Monday, April 18, 2011

कुंवर प्रीतम का नया मुक्तक


नहीं कोई तमन्ना अब, बची तुमसे मोहब्बत की

नहीं ख्वाहिश रही कोयी, गैरों की इनायत की
कहा मुफलिस मुझे तुने, यही इनाम है काफी
प्रिये हाँ, देख ली ताक़त अमीरों की शराफत की

कुंवर प्रीतम
१८.४.११ 

Sunday, April 17, 2011

कुंवर प्रीतम का मुक्तक


शहर से दूर चलकर अब, चलो ऐसा बनायें घर

जहाँ रंजिश किसी से भी, न हो और न किसी का डर
खुले दिल से मिलें सबसे, बिताएं चैन का जीवन
उतारें कर्ज मिटटी का, हरदम हम ख़ुशी से तर

कुंवर प्रीतम 
कोलकाता
१७.४.२०११

कुंवर प्रीतम का नया मुक्तक


घाट घाट पर जाकर पानी, हमने खूब पिया अब तक
गम, दुश्वारी और उदासी, जीवन खूब जिया अब तक
चलते-चलते पगडण्डी पर, सांझ हो गयी जीवन की
जिसको मान सकूँ अपना वो मिला नहीं पिया अब तक 

कुंवर प्रीतम 
कोलकाता

Friday, April 15, 2011

कुंवर प्रीतम के मुक्तक


कुंवर प्रीतम के मुक्तक 

मेरा दिल क्यूँ धड़क बैठा, ये साँसें कंपकंपाई क्यूँ
तुम्ही ने कुछ किया होगा, हवाएं तेज आई क्यूँ 
अचानक क्यूँ महक आई, आकर छू गयी तन-मन
सिहर उट्ठा बदन मेरा, ये आँखें डबडबाई क्यूँ.

परिंदे रात में, ख्वाबों में आकर गुनगुनाते  हैं
नहीं मालूम मेरा गम या अपना गीत गाते हैं
गुटरगूं उनकी सुनने को मैं जब भी कान देता हूँ
झुका कर शर्म से पलकें, परिंदे भाग जाते हैं

लगाना, तोड़ देना दिल, कहो कैसी इनायत है
कभी मुझसे कहा क्यूँ था, मोहब्बत ही इबादत है
जो चाहो फैसला कर लो, मगर सुन लो हमारी भी 
है मुजरिम भी तुम्हारा औ तुम्हारी ही अदालत है 

कुंवर प्रीतम
कोलकाता 
पहला बैशाख, १५ अप्रैल २०११  

Friday, July 30, 2010

श्री प्रकाश चंडालिया

राष्ट्रीय महानगर, कोलकाता के प्रधान संपादक श्री प्रकाश चंडालिया

Wednesday, March 17, 2010




राष्ट्रीय महानगर के संपादक प्रकाश चंडालिया का बंडेल, पश्चिम बंगाल में आयोजित समोराह में अभिनन्दन करते श्री श्याम बल मंडल के सदस्य।