Thursday, August 30, 2012


कड़वे बोल सुनाने निकला,
लेकिन जग में कौन सुनेगा
खुरचन सबके चेहरों पर हैं 
खुद से खुद सब लड़े हुए हैं

ग्रन्थ, गुरु और सीख सन्त की
नहीं चाहिए यहां किसी को
ओढ़ अंधेरे की चादर सब
सुधबुध खोकर पड़े हुए हैं

कोलाहल से भरी जिन्दगी
रोबोट-रोबोट खेल रही है
भाग रहे पैसे खातिर औ
पैर कब्र में गड़े हुए हैं

देख बयार बदल की साधो
पंडित, मुल्ला बदल चुके हैं
ऊपरवाला तक बदला है
उसपर जेवर जड़े हुए हैं

नहीं अगर जो बदला जग में
एक बचा है प्रीतम प्यारे
पार नहीं उसकी मस्ती का
उसकी मिट्टी अलग है प्यारे

एक हमी जो इस युग में भी
अपने पथ पर अड़े हुए हैं
छुटपन में मां ने जो दी थी,
पोथी लेकर पड़े हुए हैं

मीत न बदलो, प्रीत न बदलो
मौन रहो, पर गीत न बदलो
बोल सुनेगा खुद ईश्वर भी
हार बदल दो, जीत न बदलो

कल देखोगे, रुठे -रुठे
हो जाएंगे अपने-अपने
टूटे-बिखरे जितने भी हैं
हो जाएंगे सपने- अपने

-कुंवर प्रीतम
31 अगस्त 2012

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