Saturday, December 20, 2008

दोहे


मैंने पूछा सौंप से दोस्त बनेंगे आप,

नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।

कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल,

सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।

जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग,

मच्छर का फिर क्या करें जो फैलाए रोग।

दुखी गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।

गलती करता आदमी लेता मेरा नाम।

साभार-श्यामल सुमन

प्रस्तुति-मकबूल

Friday, December 5, 2008

वतन बेचते नेता लोग

पहन के खद्दर निकल पड़े हैं, वतन बेचने नेता लोग

मल्टी मिलियन कमा चुके पर, छूट न पाता इनका रोग

दावूद से इनके रिश्ते और आतंकी मौसेरे हैं

खरी- खरी प्रीतम कहता है, इसीलिए मुंह फेरे हैं

कुर्सी इनकी देवी है और कुर्सी ही इनकी पूजा

माल लबालब ठूंस रहे हैं, काम नही इनका दूजा

सरहद की चिंता क्या करनी, क्यूँ महंगाई का रोना

वोट पड़ेंगे तब देखेंगे, तब तक खूंटी तान के सोना

गद्दारों की फौज से बंधू कौन यहाँ रखवाला है?

बापू बोले राम से रो कर, कैसा गड़बड़झाला है?

कुंवर प्रीतम

करो खिदमत धक्कों से

आतंकी को नही मिलेगी जमीं दफ़न होने को
अपना तो ये हाल कि बंधू अश्क नही रोने को
आंसू सारे बह निकले है, नयन गए हैं सूख
२६ से बेचैन पडा हूँ, लगी नही है भूख
लगी नही है भूख, तन्हा टीवी देख रहे हैं
उन ने फेंके बम-बारूद, ये अपनी सेंक रहे हैं
सुनो कुंवर की बात खरी, ये मंत्री लगते छक्कों से
जाने वाले नही भाइयों, करो खिदमत धक्कों से
कुंवर प्रीतम

ऎसी क्या मजबूरी है?

वाह सोनिया, वाह मनमोहन जी, खूब चल रहा खेल
घटा तेल के दाम रहे जब, निकल गया सब तेल
निकल गया सब तेल कि भईया टूटी कमर महंगाई में
आटा तेल की खातिर घर-घर पंगा लोग-लुगाई में।
देश पूछता आखिर बंधू, ऎसी क्या मजबूरी है?
पी एम् हो तुम देश के, या सोनिया देती मजदूरी है
कुंवर प्रीतम

Monday, December 1, 2008

अपना मंच की गोष्ठी में गूंजे कवियों के स्वर

कोलकाता। संध्या हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय महानगर द्वारा भाषा और साहित्य के अनुरागियों के लिए स्थापित अपना मंच की प्रथम काव्य गोष्ठी शनिवार २९ नवम्बर को राष्ट्रीय महानगर सभा कक्ष में संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ रचनाकार और भारतीय वांग्मय पीठ के प्रणेता प्रो. श्यामलाल उपाध्याय ने की. कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संयोजन प्रदीप कुमार धानुक ने किया, जबकि फर्स्ट न्यूज़ के संपादक संजय सनम ने अत्यन्त भावपूर्ण अंदाज में गोष्ठी का संचालन किया. प्रारम्भ में राष्ट्रीय महानगर के संपादक प्रकाश चंडालिया ने गोष्ठी के आयोजन और अपना मंच के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि अपना-मंच का मुख्या उद्देश्य नवागत रचनाकारों को मंच प्रदान करना है. अपना-मंच की और से हर गोष्ठी में एक अनुभवी और एक उदीयमान रचनाकार को गोष्ठी के श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सम्मानित किया जाएगा. गोष्ठी में ४५ रचनाकारों में काव्य पाठ किया. वरिष्ठ कवि योगेन्द्र शुक्ल "सुमन" और नन्दलाल 'रोशन' को इस काव्य गोष्ठी के श्रेष्ठ कवि के रूप में चुना गया. इस गोष्ठी में डॉक्टर लखबीर सिंह निर्दोष, मुश्ताक अंजुम , कालीप्रसाद जायसवाल, डॉक्टर सेराज खान बातिश, गुलाब बैद, प्रसन्न चोपडा, मृदुला कोठारी, सुशीला चनानी, शकुन त्रिवेदी,जीतेन्द्र जितांशु, शम्भू जालान निराला, हरिराम अग्रवाल, सुरेंद्रदीप, विश्वजीत शर्मा विश्व, विजय दुगर, सुनील निगानिया, सत्य मेधा, राधेश्याम पोद्दार, श्रीकृष्ण अग्रवाल मंगल, रामावतार सिंह, श्रीमती चक्रबर्ती , अनीता मिश्रा सरीखे कवि -रचनाकारों ने अपनी रचनाये सुनायीं। जनसत्ता के वरिष्ठ उपसंपादक एवं सुपरिचित लेखक विनय बिहारी सिंह, साहित्यानुरागी पारस बोथरा और प्रभात चंडालिया भी गोष्ठी में उपस्थित थे. ज्यादातर कवियों ने मुंबई ब्लास्ट एवं आतंकवाद पर ताजातरीन रचनाएँ सुनायीं. आयोजन की व्यवस्था में गोपाल चक्रवर्ती और हरीश शर्मा का योगदान रहा।

शकुन त्रिवेदी की कवितायें


कब होगी फांसी

थकगए हम तुम्हे फांसी से बचाते
कब आएंगे तुम्हारे आका, क्यों नहीं बताते
एकन एक दिन तो होनी है तुम्हें फांसी
ऐसा न हो पड़ जाए आकाओं को कुर्सी गंवानी
पर, क्या हम आतंकके खिलाफ कुछ न कर पाएंगे
सिर्फ और सिर्फ चार आंसू बहाएंगे
सुनो तुम , करो मेरी बात पर गौर
जल्द भेजवा दो चन्द आतंकी और
ले जाएंगे फिर निर्दोषों को बंधकबतौर
चल न पाएगा, नेताओं का उन पर कोई जोर
बदले में आका मांगेंगे तुम्हारी रिहाई
सरकार फिर दे देगी तुम्हे खुशी से विदाई...

2.

तोहफा

अर्थी पर आया है मेरा एकसपना
लुटे हुए अरमानों का आंखों में धंसना
घुटी हुई सिसकियां पूछती हैं हमसे
बताओ, अब हम जिएंगे कैसे?
तड़पेंगे देखकर खुला आसमान
नहीं ले पाएंगे खुशियों की उड़ान
क्योंकि
मेरा अपना, जिसे मैंने जाया था
आज टुकड़ों में आया है
देश के गद्दारों से यह तोहफा हमने पाया है...

कवयित्री कोलकाता में निवास करती हैं।

विश्वजीत शर्मा विश्व की कवितायें


नेता के नाम संदेश

रोज रोज डर डर के मरना
रोज रोज मर मर के जीना
बहुत हो चुका लोकाडम्बर
अब लड़ जाओ तान के सीना
जीओ जब तकशान से जियो
मर-मर कर भी क्या है जीना?
निज गौरव का जहर भला है
बिन गौरव क्या अमृत पीना?
हे हिन्द देश के कर्णधारो,
जो कहते हो, करके दिखलाओ
पद-कुरसी हथियाने वालो
अब तो करकरे बन दिखलाओ
बन्द करो घडिय़ाली आंसू
मत राजनीति को बदनाम करो
पुन: चाहते गर विश्व से इज्जत
हो संगठित, सार्थककाम करो.

लोकतंत्र की अर्थी


अर्थी नहीं गजेंद्र -संदीप की
यह लोकतंत्र की अर्थी है
कोटि-कोटि भारतवासी की
यह मर्यादा की अर्थी है
अर्थी नहीं सिर्फ जवानों की
यह, हिन्द-पुत्रों की अर्थी है
हम भारतवासी की विश्व
यह आशाओं की अर्थी है ।

कवि कोलकाता में निवास करते हैं।