Saturday, December 20, 2008

दोहे


मैंने पूछा सौंप से दोस्त बनेंगे आप,

नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।

कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल,

सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।

जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग,

मच्छर का फिर क्या करें जो फैलाए रोग।

दुखी गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।

गलती करता आदमी लेता मेरा नाम।

साभार-श्यामल सुमन

प्रस्तुति-मकबूल

Friday, December 5, 2008

वतन बेचते नेता लोग

पहन के खद्दर निकल पड़े हैं, वतन बेचने नेता लोग

मल्टी मिलियन कमा चुके पर, छूट न पाता इनका रोग

दावूद से इनके रिश्ते और आतंकी मौसेरे हैं

खरी- खरी प्रीतम कहता है, इसीलिए मुंह फेरे हैं

कुर्सी इनकी देवी है और कुर्सी ही इनकी पूजा

माल लबालब ठूंस रहे हैं, काम नही इनका दूजा

सरहद की चिंता क्या करनी, क्यूँ महंगाई का रोना

वोट पड़ेंगे तब देखेंगे, तब तक खूंटी तान के सोना

गद्दारों की फौज से बंधू कौन यहाँ रखवाला है?

बापू बोले राम से रो कर, कैसा गड़बड़झाला है?

कुंवर प्रीतम

करो खिदमत धक्कों से

आतंकी को नही मिलेगी जमीं दफ़न होने को
अपना तो ये हाल कि बंधू अश्क नही रोने को
आंसू सारे बह निकले है, नयन गए हैं सूख
२६ से बेचैन पडा हूँ, लगी नही है भूख
लगी नही है भूख, तन्हा टीवी देख रहे हैं
उन ने फेंके बम-बारूद, ये अपनी सेंक रहे हैं
सुनो कुंवर की बात खरी, ये मंत्री लगते छक्कों से
जाने वाले नही भाइयों, करो खिदमत धक्कों से
कुंवर प्रीतम

ऎसी क्या मजबूरी है?

वाह सोनिया, वाह मनमोहन जी, खूब चल रहा खेल
घटा तेल के दाम रहे जब, निकल गया सब तेल
निकल गया सब तेल कि भईया टूटी कमर महंगाई में
आटा तेल की खातिर घर-घर पंगा लोग-लुगाई में।
देश पूछता आखिर बंधू, ऎसी क्या मजबूरी है?
पी एम् हो तुम देश के, या सोनिया देती मजदूरी है
कुंवर प्रीतम

Monday, December 1, 2008

अपना मंच की गोष्ठी में गूंजे कवियों के स्वर

कोलकाता। संध्या हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय महानगर द्वारा भाषा और साहित्य के अनुरागियों के लिए स्थापित अपना मंच की प्रथम काव्य गोष्ठी शनिवार २९ नवम्बर को राष्ट्रीय महानगर सभा कक्ष में संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ रचनाकार और भारतीय वांग्मय पीठ के प्रणेता प्रो. श्यामलाल उपाध्याय ने की. कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संयोजन प्रदीप कुमार धानुक ने किया, जबकि फर्स्ट न्यूज़ के संपादक संजय सनम ने अत्यन्त भावपूर्ण अंदाज में गोष्ठी का संचालन किया. प्रारम्भ में राष्ट्रीय महानगर के संपादक प्रकाश चंडालिया ने गोष्ठी के आयोजन और अपना मंच के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि अपना-मंच का मुख्या उद्देश्य नवागत रचनाकारों को मंच प्रदान करना है. अपना-मंच की और से हर गोष्ठी में एक अनुभवी और एक उदीयमान रचनाकार को गोष्ठी के श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सम्मानित किया जाएगा. गोष्ठी में ४५ रचनाकारों में काव्य पाठ किया. वरिष्ठ कवि योगेन्द्र शुक्ल "सुमन" और नन्दलाल 'रोशन' को इस काव्य गोष्ठी के श्रेष्ठ कवि के रूप में चुना गया. इस गोष्ठी में डॉक्टर लखबीर सिंह निर्दोष, मुश्ताक अंजुम , कालीप्रसाद जायसवाल, डॉक्टर सेराज खान बातिश, गुलाब बैद, प्रसन्न चोपडा, मृदुला कोठारी, सुशीला चनानी, शकुन त्रिवेदी,जीतेन्द्र जितांशु, शम्भू जालान निराला, हरिराम अग्रवाल, सुरेंद्रदीप, विश्वजीत शर्मा विश्व, विजय दुगर, सुनील निगानिया, सत्य मेधा, राधेश्याम पोद्दार, श्रीकृष्ण अग्रवाल मंगल, रामावतार सिंह, श्रीमती चक्रबर्ती , अनीता मिश्रा सरीखे कवि -रचनाकारों ने अपनी रचनाये सुनायीं। जनसत्ता के वरिष्ठ उपसंपादक एवं सुपरिचित लेखक विनय बिहारी सिंह, साहित्यानुरागी पारस बोथरा और प्रभात चंडालिया भी गोष्ठी में उपस्थित थे. ज्यादातर कवियों ने मुंबई ब्लास्ट एवं आतंकवाद पर ताजातरीन रचनाएँ सुनायीं. आयोजन की व्यवस्था में गोपाल चक्रवर्ती और हरीश शर्मा का योगदान रहा।

शकुन त्रिवेदी की कवितायें


कब होगी फांसी

थकगए हम तुम्हे फांसी से बचाते
कब आएंगे तुम्हारे आका, क्यों नहीं बताते
एकन एक दिन तो होनी है तुम्हें फांसी
ऐसा न हो पड़ जाए आकाओं को कुर्सी गंवानी
पर, क्या हम आतंकके खिलाफ कुछ न कर पाएंगे
सिर्फ और सिर्फ चार आंसू बहाएंगे
सुनो तुम , करो मेरी बात पर गौर
जल्द भेजवा दो चन्द आतंकी और
ले जाएंगे फिर निर्दोषों को बंधकबतौर
चल न पाएगा, नेताओं का उन पर कोई जोर
बदले में आका मांगेंगे तुम्हारी रिहाई
सरकार फिर दे देगी तुम्हे खुशी से विदाई...

2.

तोहफा

अर्थी पर आया है मेरा एकसपना
लुटे हुए अरमानों का आंखों में धंसना
घुटी हुई सिसकियां पूछती हैं हमसे
बताओ, अब हम जिएंगे कैसे?
तड़पेंगे देखकर खुला आसमान
नहीं ले पाएंगे खुशियों की उड़ान
क्योंकि
मेरा अपना, जिसे मैंने जाया था
आज टुकड़ों में आया है
देश के गद्दारों से यह तोहफा हमने पाया है...

कवयित्री कोलकाता में निवास करती हैं।

विश्वजीत शर्मा विश्व की कवितायें


नेता के नाम संदेश

रोज रोज डर डर के मरना
रोज रोज मर मर के जीना
बहुत हो चुका लोकाडम्बर
अब लड़ जाओ तान के सीना
जीओ जब तकशान से जियो
मर-मर कर भी क्या है जीना?
निज गौरव का जहर भला है
बिन गौरव क्या अमृत पीना?
हे हिन्द देश के कर्णधारो,
जो कहते हो, करके दिखलाओ
पद-कुरसी हथियाने वालो
अब तो करकरे बन दिखलाओ
बन्द करो घडिय़ाली आंसू
मत राजनीति को बदनाम करो
पुन: चाहते गर विश्व से इज्जत
हो संगठित, सार्थककाम करो.

लोकतंत्र की अर्थी


अर्थी नहीं गजेंद्र -संदीप की
यह लोकतंत्र की अर्थी है
कोटि-कोटि भारतवासी की
यह मर्यादा की अर्थी है
अर्थी नहीं सिर्फ जवानों की
यह, हिन्द-पुत्रों की अर्थी है
हम भारतवासी की विश्व
यह आशाओं की अर्थी है ।

कवि कोलकाता में निवास करते हैं।


Sunday, November 30, 2008

A Letter to Every Indian - APJ kalam




DR. A. P. J. Abdul Kalam 's Speech in Hyderabad
Why is the media here so negative?Why are we in India so embarrassed to recognize our own strengths, our achievements?We are such a great nation. We have so many amazing success stories but we refuse to acknowledge them. Why?We are the first in milk production.We are number one in Remote sensing satellites. We are the second largest producer of wheat.We are the second largest producer of rice.Look at Dr. Sudarshan , he has transferred the tribal village into a self-sustaining, self-driving unit. There are millions of such achievements but our media is only obsessed in the bad news and failures and disasters.I was in Tel Aviv once and I was reading the Israeli newspaper. It was the day after a lot of attacks and bombardments and deaths had taken place. The Hamas had struck. But the front page of the newspaper had the picture of a Jewish gentleman who in five years had transformed his desert into an orchid and a granary. It was this inspiring picture that everyone woke up to. The gory details of killings, bombardments, deaths, were inside in the newspaper, buried among other news.
In India we only read about death, sickness, terrorism, crime.. Why are we so NEGATIVE? Another question: Why are we, as a nation so obsessed with foreign things? We want foreign T.Vs, we want foreign shirts. We want foreign technology.
Why this obsession with everything imported. Do we not realize that self-respect comes with self-reliance? I was in Hyderabad giving this lecture, when a 14 year old girl asked me for my autograph. I asked her what her goal in life is. She replied: I want to live in a developed India . For her, you and I will have to build this developed India You must proclaim. India is not an under-developed nation; it is a highly developed nation.. Do you have 10 minutes? Allow me to come back with a vengeance.
Got 10 minutes for your country? If yes, then read; otherwise, choice is yours.YOU say that our government is inefficient.YOU say that our laws are too old.YOU say that the municipality does not pick up the garbage.YOU say that the phones don't work, the railways are a joke. The airline is the worst in the world, mails never reach their destination. YOU say that our country has been fed to the dogs and is the absolute pits.
YOU say, say and say. What do YOU do about it?
Take a person on his way to Singapore . Give him a name - 'YOURS'. Give him a face - 'YOURS'. YOU walk out of the airport and you are at your International best. In Singapore you don't throw cigarette butts on the roads or eat in the stores. YOU are as proud of their Underground links as they are. You pay $5 (approx. Rs. 60) to drive through Orchard Road (equivalent of Mahim Causeway or Pedder Road) between 5 PM and 8 PM. YOU come back to the parking lot to punch your parking ticket if you have over stayed in a restaurant or a shopping mall irrespective of your status identity... In Singapore you don't say anything, DO YOU? YOU wouldn't dare to eat in public during Ramadan, in Dubai YOU would not dare to go out without your head covered in Jeddah. YOU would not dare to buy an employee of the telephone exchange in London at 10 pounds (Rs.650) a month to, 'see to it that my STD and ISD calls are billed to someone else.'YOU would not dare to speed beyond 55 mph (88 km/h) in Washington and then tell the traffic cop, 'Jaanta hai main kaun hoon (Do you know who I am?). I am so and so's son. Take your two bucks and get lost.' YOU wouldn't chuck an empty coconut shell anywhere other than the garbage pail on the beaches in Australia and New Zealand Why don't YOU spit Paan on the streets of Tokyo ? Why don't YOU use examination jockeys or buy fake certificates in Boston ??? We are still talking of the same YOU. YOU who can respect and conform to a foreign system in other countries but cannot in your own. You who will throw papers and cigarettes on the road the moment you touch Indian ground. If you can be an involved and appreciative citizen in an alien country, why cannot you be the same here in India ?
Once in an interview, the famous Ex-municipal commissioner of Bombay , Mr. Tinaikar, had a point to make. 'Rich people's dogs are walked on the streets to leave their affluent droppings all over the place,' he said. 'And then the same people turn around to criticize and blame the authorities for inefficiency and dirty pavements. What do they expect the officers to do? Go down with a broom every time their dog feels the pressure in his bowels?In America every dog owner has to clean up after his pet has done the job. Same in Japan . Will the Indian citizen do that here?' He's right.. We go to the polls to choose a government and after that forfeit all responsibility.We sit back wanting to be pampered and expect the government to do everything for us whilst our contribution is totally negative. We expect the government to clean up but we are not going to stop chucking garbage all over the place nor are we going to stop to pick a up a stray piece of paper and throw it in the bin. We expect the railways to provide clean bathrooms but we are not going to learn the proper use of bathrooms.We want Indian Airlines and Air India to provide the best of food and toiletries but we are not going to stop pilfering at the least opportunity.This applies even to the staff who is known not to pass on the service to the public.
When it comes to burning social issues like those related to women, dowry, girl child! and others, we make loud drawing room protestations and continue to do the reverse at home. Our excuse? 'It's the whole system which has to change, how will it matter if I alone forego my sons' rights to a dowry.' So who's going to change the system?What does a system consist of? Very conveniently for us it consists of our neighbours, other households, other cities, other communities and the government. But definitely not me and YOU. When it comes to us actually making a positive contribution to the system we lock ourselves along with our families into a safe cocoon and look into the distance at countries far away and wait for a Mr.Clean to come along & work miracles for us with a majestic sweep of his hand or we leave the country and run away. Like lazy cowards hounded by our fears we run to America to bask in their glory and praise their system. When New York becomes insecure we run to England When England experiences unemployment, we take the next flight out to the Gulf. When the Gulf is war struck, we demand to be rescued and brought home by the Indian government. Everybody is out to abuse and rape the country. Nobody thinks of feeding the system. Our conscience is mortgaged to money.
Dear Indians, The article is highly thought inductive, calls for a great deal of introspection and pricks one's conscience too.... I am echoing J. F. Kennedy's words to his fellow Americans to relate to Indians......
'ASK WHAT WE CAN DO FOR INDIA AND DO WHAT HAS TO BE DONE TO MAKE INDIA WHAT AMERICA AND OTHER WESTERN COUNTRIES ARE TODAY'
Lets do what India needs from us.
Forward this mail to each Indian for a change instead of sending Jokes or junk mails.
Thank you,
Dr. Abdul Kalam

अपना मंच की काव्य गोष्ठी


अपना मंच की गोष्ठी का चित्र


अपना मंच की काव्य गोष्ठी का एक चित्र


कैमरे की नजर में अपना मंच की काव्य गोष्ठी


अपना मंच की गोष्ठी में आतंकवाद के ख़िलाफ़ मुखर हुए कवियों के स्वर

कोलकाता। संध्या हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय महानगर द्वारा भाषा और साहित्य के अनुरागियों के लिए स्थापित अपना मंच की प्रथम काव्य गोष्ठी शनिवार २९ नवम्बर को राष्ट्रीय महानगर सभा कक्ष में संपन्न हुई. गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ रचनाकार और भारतीय वांग्मय पीठ के प्रणेता प्रो. श्यामलाल उपाध्याय ने की. कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संयोजन प्रदीप कुमार धानुक ने किया, जबकि फर्स्ट न्यूज़ के संपादक संजय सनम ने अत्यन्त भावपूर्ण अंदाज में गोष्ठी का सञ्चालन किया. प्रारम्भ में राष्ट्रीय महानगर के संपादक प्रकाश चंडालिया ने गोष्ठी के आयोजन और अपना मंच के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि अपना मंच का मुख्या उद्देश्य नवागत रचनाकारों को मंच प्रदान करना है. अपना मंच की और से हर गोष्ठी में एक अनुभवी और एक उदीयमान रचनाकार को गोष्ठी के श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सम्मानित किया जाएगा. गोष्ठी में ४५ रचनाकारों में काव्य पाठ किया. वरिष्ठ कवि योगेन्द्र शुक्ल "सुमन" और नन्दलाल 'रोशन' को इस काव्य गोष्ठी के श्रेष्ठ कवि के रूप में चुना गया. इस गोष्ठी में डॉक्टर लखबीर सिंह निर्दोष, मुश्ताक अहमद, कालीप्रसाद जैसवाल, डॉक्टर सेराज खान बातिश, गुलाब बैद, प्रसन्न चोपडा, मृदुला कोठारी, सुशीला चनानी, शम्भू जालान निराला, हरिराम अग्रवाल, सुरेंद्रदीप, विश्वजीत शर्मा विश्व, विजय दुगर, संजय निगानिया, जीतेंद्र जितांशु, सत्य मेधा, राधेश्याम पोद्दार, श्रीकृष्ण अग्रवाल मंगल, रामावतार सिंह, अनीता मिश्रा सरीखे कवि -रचनाकारों ने अपनी रचनाये सुनायीं. जनसत्ता के वरिष्ठ उपसंपादक एवं सुपरिचित लेखक विनय बिहारी सिंह और साहित्यानुरागी पारस बोथरा भी गोष्ठी में उपस्थित थे. ज्यादातर कवियों ने मुंबई ब्लास्ट एवं आतंकवाद पर ताजातरीन रचनाएँ सुनायीं. आयोजन की व्यवस्था में गोपाल चक्रवर्ती और हरीश शर्मा का योगदान रहा।

Thursday, November 27, 2008

कोलकाता में अपना मंच की काव्य गोष्ठी शनि २८ नवम्बर को

हिन्दी सांध्य दैनिक राष्ट्रीय महानगर के तत्वावधान में अपना मंच की और से शनिवार २८ नवम्बर को सायं ५ बजे से कोलकाता और आसपास के रचनाकारों की एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया है। इस काव्य गोष्ठी का सञ्चालन करेंगे फर्स्ट न्यूज़ के संपादक संजय सनम और संयोजक हैं प्रदीप कुमार धानुक। राष्ट्रीय महानगर के संपादक प्रकाश चंडालिया ने शहर के रचनाकारों को मंच देने की भावना से अपना मंच का गठन किया है। इस ब्लॉग के पाठक बंधू चाहें तो अपनी रचनाएँ mahanagarindia@gmail.com पर भेज सकते हैं। चुनिन्दा रचनाओं का वाचन भी किया जा सकता है। किसी हिन्दी अखबार की और से इस प्रकार की गोष्ठी का यह पहला प्रयास है। कोलकाता या आसपास के बंधू इस गोष्ठी में शामिल होना चाहें, तो उनका भी स्वागत है। गोष्ठी का स्थान हैराष्ट्रीय महानगर सभागार ३०९, बिपिन बिहारी गांगुली स्ट्रीट , २ तल्ला, कोलकाता पुलिस मुख्यालय के पास कोलकाता -१२ संपर्क- 098300 38335

Wednesday, November 19, 2008

भारतीय संस्कृति संसद में बच्चन के मधुकाव्य पर अभिनव आयोजन



प्रकाश चण्डालिया
कोलकाता। हरिवंश राय बच्चन के जन्मशती समारोह के अन्तर्गत संसद परिवार की ओर से आयोजित संगीतमय कार्यक्रम बच्चन का मधुकाव्य शहर के काव्यानुरागी श्रोताओं के लिए यादगार अनुष्ठान बन गया। खचाखच भरे सभागार में लोगों ने मधुशाला एंव अन्यान्य रचनाओं के माध्यम से भरपूर ज्ञानरंजन किया। हाला, प्याला, साकी और मधुशाला रुपी प्रतीकों के माध्यम से कवि के राष्ट्रदर्शन, भक्ति, श्रृंगार, वेदना व ऋतु सम्बन्धी रूबाइयों का प्रस्तुतीकरण विभिन्न रागों में किया गया। जिससे दर्शकमंत्रमुग्ध हो गए। इसके अलावा बच्चनजी की सुप्रसिद्ध कविताएं इस पार-उस पार एवं पथभ्रष्ट की आवृति की गई। मधुकाव्य से सम्बन्धित रोचक संस्मरण एवं बच्चन जी के जीवन से सम्बद्ध प्रेरक घटनाओं का भी जिक्र किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन, संयोजन संस्था के कर्मसचिव श्रीराम चमडिय़ा ने किया। काव्यपाठ आदि में अंशग्रहण किया सर्वश्री काशीप्रसाद खेरिया, गोविन्द फतेहपुरिया, श्यामसुन्दर बगडिय़ा, श्रीराम चमडिय़ा, राजगोपाल सुरेका, महेश लोधा, विजय झुनझुनवाला, विश्वनाथ केडिया, राजीव माहेश्वरी, प्रमोद शाह, केशव बिन्नानी, चंद्रशेखर लाखोटिया एवं सर्वश्रीमती डा. तारा दुगड़, चित्रा नेवटिया, नीता सिंघवी एवं विद्या भण्डारी ने। अनुष्ठान की सफलता के लिए जनसंपर्क प्रभारी अजय अग्रवाल सक्रिय थे।

Monday, November 17, 2008

महाकवि सेठिया को रुखी विदाई

प्रकाश चंडालिया
कोलकाता का राजस्थानी समाज शायद सो गया है। सोया नहीं है तो निसंदेह अपनी सौजन्यता के समृद्ध पारम्परिक पथ से विमुख हो रहा है। धरती धोरां री और पाथळ र पीथळ जैसे अमर गीतों की रचना करने वाले, हिन्दी, राजस्थानी एवं उर्दू की 34 पुस्तकों के रचयिता महाकवि कन्हैयालाल सेठिया की श्रद्धांजलि सभाओं में उपस्थित लोगों की गिनती तो कमोबेश यही संकेत देती है। राजस्थानी समाज के प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में कई दशकों तक सक्रिय रहने वाले सेठियाजी के महाप्रयाण को रोकना तो, माना, किसी के वश में नहीं था, पर उन्हें जागरूक समाज पूरी भावना से विदायी देता-यह तो वश में था। एक सप्ताह में अलग अलग स्थानों में सेठियाजी की दो सभाओं का आयोजन हुआ। दोनों सभाओं में मोट उपस्थिति गिनी जाए, तो 200 के आंकड़ों को पार नहीं कर पाएगी।राजस्थान परिषद के साथ सेठियाजी का जुड़ाव उतना ही गहरा रहा, जितना उनकी अपनी रचनाधर्मिता से। इस परिषद के साथ वे वर्षों तक आत्मीय भाव से प्राण पुरुष के रूप में जुड़े रहे। पर लगता है, वर्तमान में परिषद की बागडोर संभालने वालों के मन में उनके योगदानों पर उत्साह कम, उदासीनता अधिक थी। आम तौर पर राजस्थान परिषद के आयोजनों में ओसवाल भवन के पूरे तल्ले में कुर्सियां लगाई जाती हैं, लेकिन सेठियाजी की शोकसभा में होने वाली उपस्थिति का अंदाजा इन्हें पहले से ही था, सो आधे हॉल को खाली छोड़ दिया गया। जितने में कुर्सियां बिछी थीं, उनमें भी कुछेक मेहमान को तरस रही थीं। राजस्थान परिषद की वार्षिक स्मारिका में प्रवासी राजस्थानियों की जितनी प्रतिनिधि ग्राम संस्थाओं के नाम प्रकाशित होते हैं, उनमें से कईयों के प्रतिनिधि नदारद थे। क्या यह इन संस्थाओं का सामाजिक कर्तव्य नहीं था कि जिन सेठियाजी ने अपना पूरा जीवन राजस्थान और राजस्थानी भाषा के लिए खपा दिया, उनके सम्मान में श्रद्धा के दो फूल चढ़ा आते? प्रतिनिधि संस्थाओं के साथ राजस्थान परिषद का कितना आन्तरिक सम्बन्ध है, यह इसी से उजागर होता है।मंच पर अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के निवर्तमान होने जा रहे महामंत्री मौजूद थे, जबकि अन्य पदाधिकारियों के पास फुर्सत नहीं थी। शायद सेठियाजी का आकलन लोग ऐसे ही करते हैं। सेठियाजी जन्मना सेठिया होकर भी आमजन के कल्याण के लिए सक्रिय रहे। हरिजनों के लिए खड़े हुए, पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा, राजस्थानी के लिए भूख हड़ताल पर बैठे, नेताओं से लोहा लिया। पर उन्हें प्रवासी राजस्थानी समाज ने इतनी जल्दी भुलाने का बीड़ा उठा लिया, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।राजस्थान परिषद चाहता तो इस शोकसभा को संकल्प सभा में तब्दील करवा सकता था। सेठियाजी के महाप्रयाण के साथ राजस्थानी को संविधान की मान्यता दिलाने का सपना खत्म नहीं हो गया है। परिषद के कर्णधारों से अपेक्षा है कि वे अब भी सकारात्मक सोच के साथ आगे आएं, ताकि राजस्थानियों की पहचान केवल लोटा-डोरी लेकर आने वालों के रूप में न रह जाए। सेठियाजी तो भाषा, संस्कृति और संस्कार लेकर आए थे। लोटा-डोरी वालों ने अर्थ का घड़ा भरा, पर सेठियाजी ने तो जीवन पर्यन्त साहस और स्वाभिमान का प्रसाद बांटा। जिस कोलकाता महानगर में राजस्थानी समाज की तमाम संस्थाओं के केंद्रीय कार्यालय हों, वहां राजस्थान के सदी के श्रेष्ठ कवियों में अग्रणी सेठियाजी के महाप्रयाण पर रूखी विदाई कई सवाल खड़ा करती है। जो समाज अपने साहित्यकारों को अपेक्षित सम्मान नहीं दे सकता, उसके पराभव को भला कौन रोक सकता है। पारिवारिक आयोजनों में सोने के बाजोट पर अनगिनत पकवान परोसने और दिखावा करने वालों से कोई अपेक्षा नहीं करता, पर जागरूक लोगों का रूखापन तो आंखों में आंसू लाता ही है।

Saturday, November 15, 2008

ज्योतिषी की भूमिका में पत्रकार


जनसत्ता में वरिष्ट पत्रकार श्री विनय बिहारी सिंह को अपने इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के कोलकाता दफ्तर में पिछले दिनों नई भूमिका में देखा गया। विनय जी के ज्योतिषीय ज्ञान से उनके करीबी मित्र तो परिचित थे, लेकिन जब इंडियन एक्सप्रेस मैनेजमेंट को इसकी जानकारी हुई तो प्रबंधन ने उनके इस ज्ञान का लाभ उठाने का अवसर धुंद लिया। विनय जी के लिए इंडियन एक्सप्रेस का कांफ्रेंस हॉल खाली करा दिया गया और सारे दिन हाथ में कलम रखने वाला पत्रकार मेग्निफ्यिंग ग्लास लेकर लोगों की हथेलियाँ बांचता रहा । विनय जी ने दिन भर में काफ़ी लोगो का हाथ देखा और आलम यह रहा की सारे लोग उनकी भविस्यवानियों से स्तब्ध थे। सबने विनय जी के ज्योतोषीय ज्ञान का लोहा माना । इंडियन एक्सप्रेस मैनेजमेंट ने बाकायदा उनके हुनर का सम्मान करते हुए अप्प्रेसिअशन लैटर और उपहार देकर सम्मानित किया ।

गुवाहाटी में आतंकवाद के खिलाफ आंदोलन शुरू

बिनोद रिंगानिया

http://binodringania.blogspot.com/
गुवाहाटी की सड़कों पर मंगलवार की दोपहर को जो जनता का समूह इकट्ठा हुआ वह असम को 29 साल पीछे ले गया। 29 साल पहले असम में अवैध घुसपैठियों के विरुद्ध एक ऐतिहासिक आंदोलन की शुरुआत कुछ इसी अंदाज में हुई थी। प्रफुल्ल कुमार महंत तथा उनके साथियों के नेतृत्व में निकाले गए जुलूस में जब अप्रत्याशित रूप से लोगों की उपस्थिति देखी गई और यह भी देखा गया कि इसमें समाज के सभी वर्ग के लोग शामिल हुए हैं तो इससे छात्र नेताओं को नई ऊर्जा मिली और विदेशी घुसपैठियों के खिलाफ ऐसा आंदोलन शुरू हुआ जिसकी मिसाल भारत में और कहीं देखने को नहीं मिलती।होने को और भी बहुत सारे आंदोलन में देश में हुए हैं लेकिन असम आंदोलन के नाम से ख्यात इस घुसपैठिया विरोधी आंदोलन की खास बात थी इसका कुछ अपवादों को छोड़कर शांतिपूर्ण होना। आंदोलन का नेतृत्व छात्रों में से आया था लेकिन वह इतना परिपक्व था कि हिंसा का मतलब समझता था। आंदोलनों में हिंसा होने पर राज्य की शक्ति को उसे कुचलने में आसानी होती है। असम पर जबरदस्ती थोप दिए गए चुनावों के कारण बाद में हिंसा हुई भी और राज्य शक्ति ने उसे कुचला भी। इसके बाद का इतिहास भी लोगों के लिए अनजाना नहीं है। छात्रों का राजनेताओं में तब्दील होना और सत्ताधारी बनकर घुसपैठियों की समस्या को भूल जाना। फिर भी कुल मिलाकर असम आंदोलन आज भी अपनी जनभागीदारी और शांतिपूर्ण चरित्र के लिए याद किया जाता है।यह अजीब संयोग है कि 1979 के आंदोलन की शुरुआत भी लोगों के राजनेताओं से मोहभंग के कारण हुई थी। और मंगलवार को जज फील्ड में जो समागम हुआ वह भी जनता की राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों के प्रति मोहभंग के कारण हुआ है। राजनेता भले कितने ही चालाक बनने की कोशिश करे, लोगों से यह छुपा पाने में वे बिल्कुल असफल रहते हैं कि उनके एक-एक शब्द के पीछे राजनीति छुपी रहती है। और वह राजनीति सिर्फ सत्तासुंदरी को प्राप्त करने के एकमात्र मकसद तक सीमित रहती है। इसलिए इसमें आश्चर्य नहीं होता जब कई-कई सालों तक सत्तासुख भोगने का तथाकथित जनादेश प्राप्त करने वाली राजनीतिक पार्टियों के आंदोलनात्मक कार्यक्रमों में भी चंद पार्टी कार्यकर्ताओं के ही दर्शन होते हैं। आम जनता को वैसे बंद, धरना या जुलूस वाले तथाकथित आंदोलनों से कोई लेना-देना नहीं होता।असम में बम विस्फोटों के बाद जिस तरह का जनजागरण शुरू हुआ है वैसा बंगलोर, मुंबई, जयपुर, दिल्ली या अहमदाबाद में देखने को नहीं मिला। इसका कारण यह होगा कि असमवासियों की छठी इंद्रीय ने शायद जान लिया है कि 30 अक्टूबर के बम धमाके तो एक शुरुआत भर थे आगे इससे भी भीषण विभीषिकाएं उनका इंतजार कर रही हैं। 1979 के दौरान एक लोकप्रिय नारे का भावार्थ यह था कि आज जो कुछ असम में हो रहा है वही कल सारे भारत को भोगना होगा। आज जब हम दिल्ली, जयपुर, मुंबई आदि शहरों को बांग्लादेशी आबादी से जूझते देखते हैं तो पाते हैं कि 29 साल पहले कही गई बातें सौलहों आने सच थीं।

Friday, November 14, 2008

एक नेता की दादागिरी

सही घटना पर आधारित
प्रकाश चंडालिया

13 नवंबर की रात बड़ा अजीब वाकया हुआ। कोलकाता महानगर की तंग सड़कों पर गाड़ी वालों के साथ राहगीरों के झगड़े पल-पल की घटना की तरह हैं। बात-बेबात लोग पंगे ले लेते हैं और बात ड्राइवर की पिटाई तक पहुंच जाती है। मामला पुलिस तक जाने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता।हमारे साथ भी कल कुछ ऐसा ही होना लिखा था। हिन्दी और राजस्थानी के मूधॆन्य कवि पद्मश्री विभूषित श्री कन्हैयालाल सेठिया की शोकसभा से लौट रहा था। वहां एक पुराने साथी मिल गए। भाई ने लौटते में लिफ्ट देकर एहसान किया। उनको दरअसल, यह दिखलाना था कि वे भी अब गाड़ीवाले हो गए हैं। यह अंदाजा मुझे उनके हावभाव से लगा। उनकी निजी औकात गाड़ी लेने लायक बनी नहीं थी, यह मैं इसलिए अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि भाई के पास कोई ठाई कमाई का जरिया है नहीं। कई सालों से उनसे परिचित हैं मुझ जैसे कई लोग, फिर भी किसी को आज तक पता नहीं कि भाई की कमाई का जरिया क्या है। बहरहाल, उनकी किस्मत वे भोगें...। पर मेरे रिपोटर दिल ने यह पड़ताल करने में जरा भी वक्त नहीं लगाया कि आखिर उनके दरवाजे तक गाड़ी आई कैसे। भई, उनकी बेटी अभी नगर निगम में पाषॆद हैं। चुनकर आए तीन साल हुए हैं। तो भाई तीन साल में कोई नेता गाड़ी भी ना बना सके तो फिर राजनीति करना घाटे का सौदा नहीं होगा क्या? वैसे इस भाई ने मुझे कई बार कहा है कि उन्हें अब एक नया फ्लैट भी खरीदना है। मेरी तरह आप को भी इस पर चौंकने की जुरॆत नहीं होनी चाहिए। क्यों ठीक कहा ना मैंने? क्यूंकि यह तो होना ही था? निगम के पाषॆद को पगार में क्या पगार मिलती है, यह सभी जानते हैं। लेकिन महानगर में पाषॆद होना और वह भी व्यस्त व्यापािरक अंचल में, किसी बड़े कारखाने के मालिक की कमाई से कम फायदे मन्द तो होता नहीं है...। सो , चलिए, यह तो उनके परिचय का एक हिस्सा है।तो बात हम कर रहे थे, सड़क हादसों की और गाड़ी चलाने वालों की पिटाई की। तो बात १३ नवंबर की है। शाम के वक्त हम कोलकाता में सेठियाजी की शोकसभा से लौट रहे थे। यहां से हम दोनों को ही सत्संग के किसी अनुष्ठान में जाना था। बीच रास्ते में उन नेताजी टाइप प्राणी का घर भी था। सो भाई ने कहा, यार आपकी भाभी भी तैयार हैं, सो उन्हें भी साथ ले लेते हैं। तथास्तु-मैंने कहा। भाभी भी बैठ गईं। अच्छे मूड के साथ गाड़ी में हम बातें करते बढ़ रहे थे िक बड़ाबाजार के बांगड़ बिलि्डंग के समीप धीमी गति से चल रही हमारी गाड़ी के सामने एक कोई ३० साल का युवक पैदल रास्ता पार कर रहा था। उसने गाड़ीचालक को थोड़ा आगे बढ़ जाने को कहा। पाषॆद का बाप गाड़ी में बैठा हो तो किसकी मजाल जो कुछ कह डाले...रास्ता अपने बाप का जो ठहरा...। दो-चार पल ही बीते होंगे िक गाड़ी चालक से उसकी कहासुनी तेज हो गई। मेरे नेताजी दोस्त ने गाड़ी में बैठे-बैठे ही उस लड़के को चमकाने की कोशिश की, तो जवाब भी तीखा ही मिला। नेताजी के चालक को इतने में तैश आ गया। दरवाजा खोलकर वह बाहर कूदा और बीच सड़क पर उस लड़की की धुनाई शुरु कर दी। लड़का और चालक दोनों समान उम्र के थे। पटका-पटकी चलती रही। भीड़ जमा होगई। नेताजी भी उतरे और मजबूरन सामाजिकतावश मुझे भी उतरना पड़ा। दो-चार मिनट में बांगड़ बिल्डंग के समीप की रवींद्र सरणी का रास्ता अखाड़े में तब्दील हो गया। उस लड़के के साथ चल रही कुश्ती में नेताजी की गाड़ी के चालक का माथा फट गया और खून से नेताजी के कुरते की बांह भर गई। भीड़ में से कुछ ने नेताजी का साथ दिया तो कुछ ने उस स्थानीय लड़के का। किसी तरह हमलोगों के बीच बचाव से दोनों को छुड़ा लिया गया। अब शुरु हुआ, अपने-अपने लोगों को बुलाकर हिंसाब बराबर करने का खेल। नेताजी और उस लड़के ने अपने अपने मोबाइल से अपने खास लोगों को झमेले में पड़ने के लिए न्यौता दिया। लड़के का साथ देने कोई आता, उसके पहले ही नेताजी के ८-१० लड़के पहुंच गए और फिर नेताजी के इशारे पर तीन चार लोगों की कॉलर पकड़ कर अपने कब्जे में कर लिया। नेताजी की हिदायत पर उन दो लोगों को भी जबरिया कब्जे में लिया गया, जिन्होंने झमेले के समय नेताजी का विरोध करने की जुररत की थी। मेरा मानना है कि इनका कोई कसूर था नहीं। यहां बताना जरूरी है कि नेताजी की पत्नी यानी पाषॆद की माताजी इस दौरान गाड़ी में तनावग्रस्त मुद्रा में बैठी थीं। उन्हें अकेला देख उनका तनाव दूर करने मैं वहां पहुंचा तो देखा, कुछ लोग उनके सामने विनम्र भाव से इस मुद्रा में खड़े थे, जैसे इस घटना के लिए वे ही दोषी हैं। बहरहाल, नेताजी और उनके गुरगे उन तीन-चार लोगों को पकड़ थाना लेते गए। इस दौरान नेताजी ने मुझे समय नष्ट कर, सत्संग में चले जाने का अनुरोध किया। मैं भला क्या करता...मैं सत्संग में चला गया। दो घंटे बाद वहां से निकलकर मैंने नेताजी महाराज को फोन किया । मेरा मूड उन्हें यह समझाने को था कि जो हुआ सो हुआ, उस लड़के को छुड़वा दीजिए। पर नेताजी भला क्यों मानने वाले थे। उन्होंने कहा, साले को जमकर पिटवा दिया है। नहीं पिटवाते तो वहां नाक कटाई हो जाती। मैं मन मसोसकर चुप रहा। घर लौटा, नींद नहीं आई। सारी रात बेचैन रहा। यह सोचकर कि हम घर से क्या सोचकर निकलते हैं, रास्ते में क्या हो जाता है। वह लड़का तैश जरूर खा गया था, पर उसका आशय नेताजी के चालक का खून निकालता हरगिज नहीं था।बहरहाल, दूसरे दिन सुबह मैंने नेताजी को दोबारा यह सोचकर फोन किया कि बेचारे को किसी तरह छुड़वा दिया जाए। बेकार केस बनेगा और लड़का पुलिस वालों के हत्थे पड़ा रहेगा। नेताजी मेरे निवेदन पर जरा भी नहीं पिघले। बोले, साले को नन-बेलेबल केस दिलवा दिया है। चालक का खून और उनके इशारे पर रात को ही तैयार हुआ मेडिकल रिपोटॆ ने इसमें अहम भूमिका निभाई। नेताजी अपनी नेतागिरि में मस्त हो गए हैं, लड़का थाने में पड़ा सड़ रहा है। क्या ऐसे लड़के ही भविष्य में अपराधी नहीं बनते। मेरा यह सवाल आपकी साॐी में उस नेताजी से है। मुझे मालूम है, मेरा नेता दोस्त इस ब्लॉग पर कभी नहीं आएगा, पर यदि इस जैसा मिजाज रखने वाले नेता टाइप लोग इस पोस्ट को पढ़कर नेतागिरि के नाम पर गुंडागरदी बन्द कर दें, तो लिखना सारथक हो जाएगा। बहरहाल, मैं अपने आप को भी दोषी मानता हूं कि दोस्त नेता को नसीहत नहीं दे सका। एक बार तो मुझे यह भी लग रहा है कि उसने बात इसलिए बढ़ाई कि गाड़ी में उसकी बीवी भी थी। भला कोई नेता अपनी बीवी के सामने हार सकता है ? और वह भी पाषॆद का बाप होकर...।

Tuesday, November 11, 2008

Shambhu Choudhary: महामनीषी पद्मश्री श्री कन्हैयालाल सेठिया नहीं रहे...#comment-form

Shambhu Choudhary: महामनीषी पद्मश्री श्री कन्हैयालाल सेठिया नहीं रहे...#comment-form

किलो नही यह क्विंटल है


बड़े भाग कोमल तन पावा

प्रेषक - सीमा , भुवनेश्वर



सबसे मेरी स्नेह सगाई


कन्हैयालाल सेठिया



मेरा है सम्बन्ध सभी से


सबसे मेरी स्नेह सगाई


मैं अखंड हूँ , खंडित होना


मेरे मन को नही सुता


पक्ष विपक्ष करूँ मैं किसका


मैं निष्पक्ष सभी से नाता


मेरे सन्मुख सभी बराबर


राजा, रंक, हिमालय, राई


सबके कुशल क्षेम का इच्छुक


सब में सत है मेरी निष्ठा


सबकी सेवा इष्ट मुझे है


सबकी प्रिय है मेरी प्रतिष्ठा


सब ही मेरे सखा बंधू हैं


मैं सब के तन की परछाई


सब की चरण -रज चंदन मुझको


सबके साँस सुरभिमय कुमकुम


सबका मंगल, मेरा मंगल


गाता मेरा प्राण विहंगम


जीवन का श्रम ताप हरे, यह


मेरे गीतों की अमरायी।


संकलन-


अपना मंच, कोलकाता



Monday, November 10, 2008

महाकवि सेठिया की एक अमर रचना


पातल’र पीथल
अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।

नान्हो सो अमर्यो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।

हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणोमेवाड़ी मान बचावण नै,

हूं पाछ नहीं राखी रण मेंबैर्यां री खात खिडावण में,

जद याद करूँ हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,

सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,

पण आज बिलखतो देखूं हूँजद राज कंवर नै रोटी नै,

तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँभूलूं हिंदवाणी चोटी नै

मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,

सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,

ऐ हाय जका करता पगल्याफूलां री कंवळी सेजां पर,

बै आज रुळै भूखा तिसियाहिंदवाणै सूरज रा टाबर,

आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,

आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती,

पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,

चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,

मैं झुकूं कियां ? है आण मनैंकुळ रा केसरिया बानां री,

मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपटआजादी रै परवानां री,

पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,

मैं मानूं हूँ दिल्लीस तनंै समराट् सनेषो कैवायो।

राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,

पण नैण कर्यो बिसवास नहीं जद बांच नै फिर बांच्यो,

कै आज हिंमाळो पिघळ बह्योकै आज हुयो सूरज सीतळ,

कै आज सेस रो सिर डोल्योआ सोच हुयो समराट् विकळ,

बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,

किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,

बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नैरजपूती गौरव भारी हो,

बो क्षात्र धरम रो नेमी होराणा रो प्रेम पुजारी हो,

बैर्यां रै मन रो कांटो हो बीकाणूँ पूत खरारो हो,

राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,

आ बात पातस्या जाणै होधावां पर लूण लगावण नै,

पीथळ नै तुरत बुलायो होराणा री हार बंचावण नै,

म्है बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,

ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?

मर डूब चळू भर पाणी मेंबस झूठा गाल बजावै हो,

पण टूट गयो बीं राणा रोतूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,

मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,

अब बता मनै किण रजवट रै रजपती खून रगां में है ?

जंद पीथळ कागद ले देखीराणा री सागी सैनाणी,

नीचै स्यूं धरती खसक गईआंख्यां में आयो भर पाणी,

पण फेर कही ततकाळ संभळ आ बात सफा ही झूठी है,

राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है।

ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूंराणा नै कागद रै खातर,

लै पूछ भलांई पीथळ तूंआ बात सही बोल्यो अकबर,

म्हे आज सुणी है नाहरियोस्याळां रै सागै सोवै लो,

म्हे आज सुणी है सूरजड़ोबादळ री ओटां खोवैलो;

म्हे आज सुणी है चातगड़ोधरती रो पाणी पीवै लो,

म्हे आज सुणी है हाथीड़ोकूकर री जूणां जीवै लो]

म्हे आज सुणी है थकां खसमअब रांड हुवैली रजपूती,

म्हे आज सुणी है म्यानां मेंतरवार रवैली अब सूती,

तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,

पीथळ नै राणा लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही ?

पीथळ रा आखर पढ़तां हीराणा री आँख्यां लाल हुई,

धिक्कार मनै हूँ कायर हूँनाहर री एक दकाल हुई,

हूँ भूख मरूं हूँ प्यास मरूंमेवाड़ धरा आजाद रवै

हूँ घोर उजाड़ां में भटकूं पण मन में मां री याद रवै,

हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,

ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,

पीथळ के खिमता बादल रीजो रोकै सूर उगाळी नै,

सिंघां री हाथळ सह लेवैबा कूख मिली कद स्याळी नै?

धरती रो पाणी पिवै इसीचातग री चूंच बणी कोनी,

कूकर री जूणां जिवै इसीहाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां में तलवार थकांकुण रांड़ कवै है रजपूती ?

म्यानां रै बदळै बैर्यां रीछात्याँ में रैवैली सूती,

मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,

कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,

राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ीलोही री नदी बहा द्यूंला,

हूँ अथक लडूंला अकबर स्यूँउजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,

जद राणा रो संदेष गयो पीथळ री छाती दूणी ही,

हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
मींझर

संकलन -

शम्भू चौधरी

महाकवि का महाप्रयाण

पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया नही रहे
प्रकाश चंडालिया
हिन्दी और राजास्थानी भाषा के लब्ध प्रतिष्ठित कवि श्री कन्हैयालाल सेठिया मंगलवार ११ नवम्बर २००८ मौन हो गए। वे ९० वर्ष के थे। भारत सरकार ने साहित्य के खेत्र में उनके अवदानों का मूल्यांकन करते हुए उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा था। सेठियाजीके निधन पर देश भर से शोक संवाद प्राप्त हो रहे हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, राजस्थान की मुख्या मंत्री वसुंधरा राजे ने अपने संदेशों में सेठिया जी के साहित्यिक अवदानों के साथ-साथ सामाजिक विषयों पर उनके कार्यों को मील का पत्थर कहा है। व्यापारिक घराने से होने के बावजूद श्री सेठिया ने कभी भी साहित्य के साथ समझौता नही किया। उनका जन्म राजस्थान के सुजानगढ़ में ११ सितम्बर १९१९ को हुआ था। उनके पिता का नाम छगनमल सेठिया और माता का नाम मनोहारी देवी सेठिया था। सेठिया जी की प्रारम्भिक पढ़ाई कलकत्ता में हुई। स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के कारण कुछ समय के लिए आपकी शिक्षा बाधित हुई, लेकिन बाद में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दर्शन, राजनीती और साहित्य आपका प्रिय विषय था। राजस्थान में सामंतवाद के ख़िलाफ़ आपने जबरदस्त मुहीम चलायी और पिछडे वर्ग को आगे लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत छोडो आन्दोलन के समय आप कराची में थे। १९४३ में सेठिया जी जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। सेठिया जी को ज्ञानपीठ की और से मूर्तिदेवी साहित्य पुरास्कार १९८८ में दिया गया। उसके बाद आपकी विविध कृतियों के लिए साहित्य अकादमी सहित देश की असंख्य संस्थाओं ने सम्मानित किया।
सेठिया जी की अमर कृतियों में धरती धोरा री राजस्थान का वंदना गीत है, जो करोडो राजस्थानी लोगों के ह्रदय की आवाज है। राणाप्रताप पर उनकी लिखी कविता- पथल आर पीतल काफ़ी लोकप्रिय रही। कुन जमीं रो धनि जैसी सैकड़ों कविताओं के मध्यम से सेठिया जी ने आम आदमी के उत्थान का कार्य किया।

सेठिया जी अपने पीछे धर्मपत्नी के अलावा दो पुत्र जयप्रकाश और विनय प्रकाश, एक पुत्री तथा पौत्र -पौत्रियों से भरा-पुरा परिवार छोड़ गए हैं। उनकी अन्त्येस्ती नीमतल्ला स्मशान घाट पर होगी, जहाँ कविगुरु रविन्द्र नाथ टगोर जी भी अन्त्येस्ती हुई थी .
महाकवि के महाप्रयाण पर हार्दिक श्रद्धांजलि .

Sunday, November 9, 2008

राजेश सिंह बसर की रचना

(1)
चिट्ठिया लिखना किताब मत लिखना।

जो मैं लिखूं, उसका जवाब मत लिखना।

अपना सब कुछ उँगलियों पे गिन चुका हूं मैं।

बेवजह तुम, कोई हिसाब मत लिखना।

कभी टुकडा, कभी पूरा, कभी परछाईं सा।

मेरी आंखों में हैं महताब मत लिखना।

इश्तहार वाले मिटा देंगे कल ही।

घर की दीवारों पर इंकलाब मत लिखना।

(2)

न दोस्ती से मिले, न दुश्मनी से मिले,

अजीब जज्बा रहा, जब भी जिन्दगी से मिले।

बस आँख मूँद लिया और मिल लिया तुझसे,

मेरा ये ख्वाब नही तू भी बे-दिली से मिले।

बाद मिलने के तेरे ऐसा इस शहर में लगा,

यकी नही है पर आज आदमी से मिले।

(3)

न जाने कितने जंजाल छोड़ आया हूँ,

जिन्दगी कितनी बेहाल छोड़ आया हूँ।

फकत ये झूठ के सिवा कुछ भी नही,

तेरे ही साथ तेरा ख्याल छोड़ आया हूँ।

उसकी कोशिश हंस के बदल दूँ दुनिया,

उसके हिस्से में मलाल छोड़ आया हूँ।

कैसे कह दूँ सहेज कर रखना,

हां तेरे पास कई साल छोड़ आया हूँ।

(4)
तेरी खुशियों की किताब में हूँ मैं।

फिर लगता है अजाब में हूँ मैं।

तू हकीकत है तुझे पा लूँगा।

बेवजह तेरे ख्वाब में हूँ मैं

राजेश बसर

आप भी कामयाब हो सकते हैं


हमेशा इस बात पर विश्वास करिए की आपके अन्दर क्या हैं और आपकी काबलियत क्या हैं, बजाये इसके लिए क्या हमरा पीछे था और क्या हमारे आगे हैं इसी अन्दर की शक्ति को भगवन बुध ने प्राप्त किया तो जिसे हम निर्वान करतेहैं ख़ुद को कमजोर मत समझो तुम ही सर्वश्रेष्ट हो याद रंखे :
टूटी टहनी ही एक दिन पतवार बनती हैं
चिंगारी भड़क कर ही अंगार बनती हैं
जो रोंदी गयी हमेशा बेबस समझकर
वाही मिटटी एक दिन मीनार बनती हैं
और यद् रंखे भाग्य भी उन्ही का साथ देता हैं जो खु पर विश्वास रखते हैं और हमारी ज्योतिष विद्या अनुसार
" Half Destiny of a Man can be converted by virtueof his Karma "
अर्थात एक इन्सान की आधी भाग्य रेखांये उनके द्वारे किए कर्मों से निर्धारित होती हैं इसलिए करम किए जा और इस दुनिया से कह दो अगर देखना चाहते हो हमारी उड़न कोतो जाओ जाकर और ऊँचा करो आसमान कोमहान safalta उसी व्यक्ति कोन प्राप्त हो सकती जो बड़ी से बड़ी असफलता को झेलने की क्षमता रखता हो
जैसे अब्राहिम लिंकन जी ( अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति ) जो कई बार असफलताओ का सवाद चखने क्ले बाद 51 वर्ष की आयु मैं अमरीका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए लिंकन जी का परिचय इस प्रकार हैं 22 वर्ष की आयु - वयापार मैं असफल
23 वर्ष की आयु - विधायक के चुनाव में हार
24 वर्ष की आयु - वियापर मैं दुबारा असफल
25 वर्ष की आयु - माता पिता की मौत (दुर्घटना)
26 वर्ष की आयु - प्रेयसी की मृत्यु
29 वर्ष की आयु - स्पीकर के चुनाव में हार
31 वर्ष की आयु - एलेस्टर के चुनाव में असफल
34 वर्ष की आयु - कांग्रेस के चुनाव में हार
37 वर्ष की आयु - वाहन दुर्घटना
39 वर्ष की आयु - सीनेट के चुनाव में हार
46 वर्ष की आयु - उप राष्ट्रपति का चुनाव हारे
49 वर्ष की आयु - सीनेट के चुनाव में हार
51 वर्ष की आयु - अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित।
दोस्तों अगर हम धर्य से अपनी मंजिल की और बढ़ते रहेंगे और बड़ी से बड़ी असफलता को झेलने में सक्षम हूंगे तो हमें मंजिल जरूर मिलेगी Where There is a Strong Will , There is a Way................
राकेश डुमरा
jeetenge.blogspot.com

रोज मरने का इंतज़ार


उसे पहले अपने खून से सींचा,
फिर उसे अपने दूध से पाला,
आँसुओं को आंचल से
ponchh उसे आंचल में छुपाया,
जब 'वह' खड़ा हुआ
तो एक नई नारी ने उसके जीवन me प्रवेश कर
पुरानी नारी कोवृद्धाश्रम की याद दिला दी।
कारण स्पष्ट था,
न तो उसे फ़िर से जन्म लेना था,
न ही उसे- उस औरत के आंचल में
फिर से छुपना ही था,
न ही उसे- उसके किसी कष्ट काहोता था
आभास,बस करता था-रोज मरने का इंतज़ार,
बस करता था-रोज मरने का इंतज़ार।
शम्भू चौधरी
कोलकाता
ehindisahitya.blogspot.com

Friday, November 7, 2008

हैप्पी बर्थडे चिराग भैया




प्यारे चिराग भैया आज आपका जन्मदिन है। मैं इस शुभ अवसर पर आपको surprise देना चाहता हूँ. ये फोटो कैसी लगी? माँ सरस्वती की कृपा से आप बहुत पढ़ें और पुरे परिवार का नाम ऊँचा करें.जन्मदिन बहुत बहुत मंगलमय हो. भैया आपकी smile अच्छी है, पर इतना serious क्यूँ रहते हो हमेशा? हंसने पर टैक्स नही लगता समझे. मिस्टर कंजूस भैया...All d best for ur forthcoming Board Exams . All d members of our family love you. पर मैं तो आपको चिराग ही पुकारूँगा. भाईजी बोलने में जुबान दुखती है ना.....



आपका naughty भाई


पहचाने क्या?


बोले तो अपुन है


चमन


नवम्बर ७, २००८