Monday, December 1, 2008

शकुन त्रिवेदी की कवितायें


कब होगी फांसी

थकगए हम तुम्हे फांसी से बचाते
कब आएंगे तुम्हारे आका, क्यों नहीं बताते
एकन एक दिन तो होनी है तुम्हें फांसी
ऐसा न हो पड़ जाए आकाओं को कुर्सी गंवानी
पर, क्या हम आतंकके खिलाफ कुछ न कर पाएंगे
सिर्फ और सिर्फ चार आंसू बहाएंगे
सुनो तुम , करो मेरी बात पर गौर
जल्द भेजवा दो चन्द आतंकी और
ले जाएंगे फिर निर्दोषों को बंधकबतौर
चल न पाएगा, नेताओं का उन पर कोई जोर
बदले में आका मांगेंगे तुम्हारी रिहाई
सरकार फिर दे देगी तुम्हे खुशी से विदाई...

2.

तोहफा

अर्थी पर आया है मेरा एकसपना
लुटे हुए अरमानों का आंखों में धंसना
घुटी हुई सिसकियां पूछती हैं हमसे
बताओ, अब हम जिएंगे कैसे?
तड़पेंगे देखकर खुला आसमान
नहीं ले पाएंगे खुशियों की उड़ान
क्योंकि
मेरा अपना, जिसे मैंने जाया था
आज टुकड़ों में आया है
देश के गद्दारों से यह तोहफा हमने पाया है...

कवयित्री कोलकाता में निवास करती हैं।

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