Saturday, December 20, 2008

दोहे


मैंने पूछा सौंप से दोस्त बनेंगे आप,

नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।

कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल,

सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।

जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग,

मच्छर का फिर क्या करें जो फैलाए रोग।

दुखी गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।

गलती करता आदमी लेता मेरा नाम।

साभार-श्यामल सुमन

प्रस्तुति-मकबूल

6 comments:

Manoj Kumar Soni said...

सच कहा है
बहुत ... बहुत .. बहुत अच्छा लिखा है
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
टेम्पलेट अच्छा चुना है. थोडा टूल्स लगाकर सजा ले .

कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.manojsoni.co.nr

Prakash Badal said...

swaagat hai aapaka

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत खूब!
बधाई स्वीकार करें

प्रदीप मानोरिया said...

आपका चिट्ठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है

मेरे ब्लॉग पर पधारें आपका स्वागत है

naresh singh said...

बहुत बढिया कविता है ।

Dileepraaj Nagpal said...

kavita to bahut achi ban gye saheb. congrats