Monday, November 10, 2008

महाकवि सेठिया की एक अमर रचना


पातल’र पीथल
अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।

नान्हो सो अमर्यो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।

हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणोमेवाड़ी मान बचावण नै,

हूं पाछ नहीं राखी रण मेंबैर्यां री खात खिडावण में,

जद याद करूँ हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,

सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,

पण आज बिलखतो देखूं हूँजद राज कंवर नै रोटी नै,

तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँभूलूं हिंदवाणी चोटी नै

मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,

सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,

ऐ हाय जका करता पगल्याफूलां री कंवळी सेजां पर,

बै आज रुळै भूखा तिसियाहिंदवाणै सूरज रा टाबर,

आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,

आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती,

पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,

चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,

मैं झुकूं कियां ? है आण मनैंकुळ रा केसरिया बानां री,

मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपटआजादी रै परवानां री,

पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,

मैं मानूं हूँ दिल्लीस तनंै समराट् सनेषो कैवायो।

राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,

पण नैण कर्यो बिसवास नहीं जद बांच नै फिर बांच्यो,

कै आज हिंमाळो पिघळ बह्योकै आज हुयो सूरज सीतळ,

कै आज सेस रो सिर डोल्योआ सोच हुयो समराट् विकळ,

बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,

किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,

बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नैरजपूती गौरव भारी हो,

बो क्षात्र धरम रो नेमी होराणा रो प्रेम पुजारी हो,

बैर्यां रै मन रो कांटो हो बीकाणूँ पूत खरारो हो,

राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,

आ बात पातस्या जाणै होधावां पर लूण लगावण नै,

पीथळ नै तुरत बुलायो होराणा री हार बंचावण नै,

म्है बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,

ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?

मर डूब चळू भर पाणी मेंबस झूठा गाल बजावै हो,

पण टूट गयो बीं राणा रोतूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,

मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,

अब बता मनै किण रजवट रै रजपती खून रगां में है ?

जंद पीथळ कागद ले देखीराणा री सागी सैनाणी,

नीचै स्यूं धरती खसक गईआंख्यां में आयो भर पाणी,

पण फेर कही ततकाळ संभळ आ बात सफा ही झूठी है,

राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है।

ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूंराणा नै कागद रै खातर,

लै पूछ भलांई पीथळ तूंआ बात सही बोल्यो अकबर,

म्हे आज सुणी है नाहरियोस्याळां रै सागै सोवै लो,

म्हे आज सुणी है सूरजड़ोबादळ री ओटां खोवैलो;

म्हे आज सुणी है चातगड़ोधरती रो पाणी पीवै लो,

म्हे आज सुणी है हाथीड़ोकूकर री जूणां जीवै लो]

म्हे आज सुणी है थकां खसमअब रांड हुवैली रजपूती,

म्हे आज सुणी है म्यानां मेंतरवार रवैली अब सूती,

तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,

पीथळ नै राणा लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही ?

पीथळ रा आखर पढ़तां हीराणा री आँख्यां लाल हुई,

धिक्कार मनै हूँ कायर हूँनाहर री एक दकाल हुई,

हूँ भूख मरूं हूँ प्यास मरूंमेवाड़ धरा आजाद रवै

हूँ घोर उजाड़ां में भटकूं पण मन में मां री याद रवै,

हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,

ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,

पीथळ के खिमता बादल रीजो रोकै सूर उगाळी नै,

सिंघां री हाथळ सह लेवैबा कूख मिली कद स्याळी नै?

धरती रो पाणी पिवै इसीचातग री चूंच बणी कोनी,

कूकर री जूणां जिवै इसीहाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां में तलवार थकांकुण रांड़ कवै है रजपूती ?

म्यानां रै बदळै बैर्यां रीछात्याँ में रैवैली सूती,

मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,

कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,

राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ीलोही री नदी बहा द्यूंला,

हूँ अथक लडूंला अकबर स्यूँउजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,

जद राणा रो संदेष गयो पीथळ री छाती दूणी ही,

हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
मींझर

संकलन -

शम्भू चौधरी

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