Monday, November 10, 2008

महाकवि का महाप्रयाण

पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया नही रहे
प्रकाश चंडालिया
हिन्दी और राजास्थानी भाषा के लब्ध प्रतिष्ठित कवि श्री कन्हैयालाल सेठिया मंगलवार ११ नवम्बर २००८ मौन हो गए। वे ९० वर्ष के थे। भारत सरकार ने साहित्य के खेत्र में उनके अवदानों का मूल्यांकन करते हुए उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा था। सेठियाजीके निधन पर देश भर से शोक संवाद प्राप्त हो रहे हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, राजस्थान की मुख्या मंत्री वसुंधरा राजे ने अपने संदेशों में सेठिया जी के साहित्यिक अवदानों के साथ-साथ सामाजिक विषयों पर उनके कार्यों को मील का पत्थर कहा है। व्यापारिक घराने से होने के बावजूद श्री सेठिया ने कभी भी साहित्य के साथ समझौता नही किया। उनका जन्म राजस्थान के सुजानगढ़ में ११ सितम्बर १९१९ को हुआ था। उनके पिता का नाम छगनमल सेठिया और माता का नाम मनोहारी देवी सेठिया था। सेठिया जी की प्रारम्भिक पढ़ाई कलकत्ता में हुई। स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के कारण कुछ समय के लिए आपकी शिक्षा बाधित हुई, लेकिन बाद में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दर्शन, राजनीती और साहित्य आपका प्रिय विषय था। राजस्थान में सामंतवाद के ख़िलाफ़ आपने जबरदस्त मुहीम चलायी और पिछडे वर्ग को आगे लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत छोडो आन्दोलन के समय आप कराची में थे। १९४३ में सेठिया जी जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। सेठिया जी को ज्ञानपीठ की और से मूर्तिदेवी साहित्य पुरास्कार १९८८ में दिया गया। उसके बाद आपकी विविध कृतियों के लिए साहित्य अकादमी सहित देश की असंख्य संस्थाओं ने सम्मानित किया।
सेठिया जी की अमर कृतियों में धरती धोरा री राजस्थान का वंदना गीत है, जो करोडो राजस्थानी लोगों के ह्रदय की आवाज है। राणाप्रताप पर उनकी लिखी कविता- पथल आर पीतल काफ़ी लोकप्रिय रही। कुन जमीं रो धनि जैसी सैकड़ों कविताओं के मध्यम से सेठिया जी ने आम आदमी के उत्थान का कार्य किया।

सेठिया जी अपने पीछे धर्मपत्नी के अलावा दो पुत्र जयप्रकाश और विनय प्रकाश, एक पुत्री तथा पौत्र -पौत्रियों से भरा-पुरा परिवार छोड़ गए हैं। उनकी अन्त्येस्ती नीमतल्ला स्मशान घाट पर होगी, जहाँ कविगुरु रविन्द्र नाथ टगोर जी भी अन्त्येस्ती हुई थी .
महाकवि के महाप्रयाण पर हार्दिक श्रद्धांजलि .

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