Sunday, November 9, 2008

राजेश सिंह बसर की रचना

(1)
चिट्ठिया लिखना किताब मत लिखना।

जो मैं लिखूं, उसका जवाब मत लिखना।

अपना सब कुछ उँगलियों पे गिन चुका हूं मैं।

बेवजह तुम, कोई हिसाब मत लिखना।

कभी टुकडा, कभी पूरा, कभी परछाईं सा।

मेरी आंखों में हैं महताब मत लिखना।

इश्तहार वाले मिटा देंगे कल ही।

घर की दीवारों पर इंकलाब मत लिखना।

(2)

न दोस्ती से मिले, न दुश्मनी से मिले,

अजीब जज्बा रहा, जब भी जिन्दगी से मिले।

बस आँख मूँद लिया और मिल लिया तुझसे,

मेरा ये ख्वाब नही तू भी बे-दिली से मिले।

बाद मिलने के तेरे ऐसा इस शहर में लगा,

यकी नही है पर आज आदमी से मिले।

(3)

न जाने कितने जंजाल छोड़ आया हूँ,

जिन्दगी कितनी बेहाल छोड़ आया हूँ।

फकत ये झूठ के सिवा कुछ भी नही,

तेरे ही साथ तेरा ख्याल छोड़ आया हूँ।

उसकी कोशिश हंस के बदल दूँ दुनिया,

उसके हिस्से में मलाल छोड़ आया हूँ।

कैसे कह दूँ सहेज कर रखना,

हां तेरे पास कई साल छोड़ आया हूँ।

(4)
तेरी खुशियों की किताब में हूँ मैं।

फिर लगता है अजाब में हूँ मैं।

तू हकीकत है तुझे पा लूँगा।

बेवजह तेरे ख्वाब में हूँ मैं

राजेश बसर

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