कन्हैयालाल सेठिया
मेरा है सम्बन्ध सभी से
सबसे मेरी स्नेह सगाई
मैं अखंड हूँ , खंडित होना
मेरे मन को नही सुता
पक्ष विपक्ष करूँ मैं किसका
मैं निष्पक्ष सभी से नाता
मेरे सन्मुख सभी बराबर
राजा, रंक, हिमालय, राई
सबके कुशल क्षेम का इच्छुक
सब में सत है मेरी निष्ठा
सबकी सेवा इष्ट मुझे है
सबकी प्रिय है मेरी प्रतिष्ठा
सब ही मेरे सखा बंधू हैं
मैं सब के तन की परछाई
सब की चरण -रज चंदन मुझको
सबके साँस सुरभिमय कुमकुम
सबका मंगल, मेरा मंगल
गाता मेरा प्राण विहंगम
जीवन का श्रम ताप हरे, यह
मेरे गीतों की अमरायी।
संकलन-
अपना मंच, कोलकाता
No comments:
Post a Comment